सोमवार, 30 जुलाई 2007

आज मॆं रहे - भाग - 1

आज मै अपना पहला विचार रखना चाहता हुं. हुम सभी खुशी चाहते है लेकिन अपने जीवन मे हम पाते है कि हुम बहुत ज्यादा खुश नही होते है. हमे हमेशा इसी बात कि चिन्ता रहती है कि भविष्य मे हम कैसे रहेगे तथा अपने जीवन का निर्वाह कैसे करेगे, अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा कैसे देंगे, अपने बुढ़ापे के लिये कैसे पैसे बचायगे, बच्चो को कैसे अर्थक्षेत्र में खङा करेगे या फिर हम दुखी रहते है कि भूतकाल में हमने कितनी गल्तिया की है काश हमने वे सब गल्तिया नही की होती तो आज मैं कहां होता. काश मैंने काम को अलग ढंग से किया होता तो मुझे कितना फायदा होता. यानि कि हम हमेशा या तो भविष्य कि चिन्ता करते है या फिर भूतकाल में जो कुछ भी गल्तिया की है उसके बारे में सोच कर परेशान रहते है. क्या कोई ऎसा तरीका नही कि हुम चिन्ता को अपने दिमाग से दुर रख कर जीवन की खुशियो का आन्नद उठा सकें. हमारे धर्मगुरु जो कुछ भी पर्वचन देते है वह इतना कठिन होता है कि हम उसे अपने जीवन में उतार नही सकते. हमने धर्मगुरु की बात सुनी है कि चिन्ता करनी नही चाहिये और इसका उपाय वे यह बताते है कि सिर्फ़ भगवान को याद रखो लेकिन आम जनता में इतनी शक्ती नही होती है कि वह अपने सारे कार्य छोङ कर सिर्फ भगवान का भजन करे. तो इसका यह मतलब है कि हम चिन्ता से नही बच सकते है.


अगर ध्यान से अपने आसपास के लोगो को देखे तो पता चलेगा कि कुछ लोग है जो इतनी कठनाईयो में भी सदा मुस्कराते रहते है. उनके उपर हमारे से ज्यादा मुश्किले होती है लेकिन वह हमेशा जिन्दगी का मजा लेते रहते है तथा जिन्दगी में तरक्की करते रहते है और दुसरी तरफ हम उनसे अच्छी स्थती में होते है और हम पाते है कि हम बहुत ज्यादा परेशान रहते है और जिन्दगी में पिछङते चले जाते है.


sanjay sharma, india
(sanjaysharma71@gmail.com)

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